बेतिया का शहीद पार्क अपने आप में काफी इतिहास समेटे हुए है, इस आर्टिकल (History of Shaheed Park Bettiah in Hindi | शहीद पार्क बेतिया का इतिहास .....) के माधयम से हम आपको शहीद पार्क बेतिया के बारे में कुछ महत्वपूर्ण जानकारी देंगे।
भारत के राष्ट्रीय आंदोलन, चम्पारण गांधी की कर्म भूमि...
सन 1857 भारत के इंकलाब की तहरीक राजपूताना और पंजाब के सहयोग नहीं देने के कारण विफल हो गई.....लेकिन आजादी की मशाल लोगों के दिलों में जलती रही, 1885 में आजादी की खातिर कांग्रेस का वजूद में आई, कांग्रेस के लोग भारत की खोई हुई गरिमा के लिए काम में लगे थे, तो दूसरी ओर हाजी इंमदादुल्लाह मुहाजिर मक्की और मौलाना कासिम नानोतवी देवबंद के छात्र मौलाना महमूद उलहसन ने जारी रखी, अफगानिस्तान से दककन, बलुचिस्तान से बंगाल समेत पूरे भारतवर्ष में आजादी की तहरीक चल पड़ी रेशमी रुमाल तहरीक के कारण माल्टा में कैद कर लिए गए 20 नवंबर 1920 को मृत्यु हो गई .
महाराजा घनश्याम सिंह के छोटे लड़के महाराजा प्रताप सिंह मुल्क छोड़कर दुनिया के लीडरों से मुलाकात पर निकल पड़े मौलाना प्रोफेसर बरकतुल्लाह और मौलाना उबैदुल्लाह से मुलाकात की अपने देश की आजादी के लिए 1915 में पहली अल्पावधि सरकार बनी जिस के राष्ट्रपति महाराजा महेंद्र प्रताप सिंह, प्रधान मंत्री मौलाना बरकतुल्लाह और गृह मंत्री मौलाना ओबैैदुल्ला हबनाए गए, राजा साहब ने अफ्रीकियों की एक फौज बनाई और यह संकल्प लिया की भारत आजाद होने के बाद ही हम वापस होंगे.( चंपारण के स्वतंता सेनानी पेज 14)
20वी सदी की शुरुआत में मौलाना मोहम्मद अली जौहर और मौलाना शौकत अली का महत्वपूर्ण योगदान सामने आया, 1914 खिलाफत आंदोलन शुरू हुआ, 1915 से 20 के बीच गांधीजी के भारत आने का समय है जब मौलाना अब्दुल बारी फिरंगी महली ने गांधी जी को खिलाफत आंदोलन में शामिल किया, जिससे गांधीजी को काफी शोहरत मिली. 1920 में खिलाफत आंदोलन और सविनय अवज्ञा आंदोलन को काफी सफलता प्राप्त हुई,
1923 में हिंदुस्तानी कांग्रेस कमेटी के मौलाना मोहम्मद अली जौहर और सचिव जवाहर लाल नेहरू बनाए गए 8,9और 10 जुलाई 1921 कराची में कांग्रेस के अधिवेशन के बाद मौलाना महमूद उल हसन, मौलाना मोहम्मद अली जौहर, मौलाना शौकत अली, मौलाना मोहम्मद हुसैन ,डॉक्टर कैचुअल शंकराचार्य, मौलाना निसार अहमद कानपुरी को कराची में नजरबंद कर दिया गया(चम्पारण के स्वतंत्रता सेनानी-अशरफ कादरी)
अक्टूबर 1928 में साइमन कमीशन वापस जाओ, लाला लाजपत राय जी ने जुलूस का नेतृत्व किया अंग्रेज एसपी एस्कॉर्ट ने उन्हें बड़ी बेरहमी से पीटा कुछ ही दिन बाद इनकी मृत्यु हो गई, यह मंजर चंद्रशेखर आजाद ,भगत सिंह और सुखदेव ने देखा था.
17 दिसंबर 1921 को अंग्रेज अफसर सेंडरसनकॉम को इन लोगों ने मार डाला और रिपब्लिकन एसोसिएशन संस्था बनाई. 8 अप्रैल 1929 असेंबली में बम फेंका.
अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी ने 7 अगस्त 1942 को फैसला लिया कि, 9 अगस्त को अंग्रेजों भारत छोड़ो की तहरीक चलाई जायेगी.
गाँधी जी का चम्पारण में आगमन
गांधीजी चंपारण में 23 अप्रैल 1917 को पहली बार बेतिया, हजारीमल धर्मशाला में आए 24-04-1917 को लौकरिया पहुंचे थे, चंपारण में नील की खेती को लेकर अंग्रेजों द्वारा हो रहे अत्याचार के विरुद्ध चंपारण के किसान बहुत पहले से एकजुट हो चुके थे इसकी जानकारी 1915 में ही गांधीजी को थी, और गांधी जी ने चंपारण आने के लिए सोच रखा था, 4 मार्च 1916 को बिहार स्पेशल ब्रांच ने यह रिपोर्ट किया था "It is also rumored in the Dehat that Mr Gandhi who had once agitated Indians in South Africa is coming here to deliver lecture...."(पीर मोहम्मद मुनिस- अफरोज आलम साहिल - 20)
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Shaheed Samarak Bettiah |
शहीद पार्क बेतिया इतिहास........
भारत छोड़ो आंदोलन(Quit India Movement), 9 अगस्त 1942 को पूरे भारतवर्ष में शुरू हो गया. चंपारण में किसानों के जितने भी बड़े नेता थे इन लोगों ने यह फैसला किया कि हम 15 दिनों के बाद में यानी 24 अगस्त 1942 को चंपारण में इसकी शुरुआत करेंगे. चंपारण के कोने-कोने से लोग जो अंग्रेजों के विरुद्ध थे, भारत की आजादी के लिए एकजुट होने की तैयारी में लग गए.
चंपारण के जितने भी बड़े नेता थे प्रजापति मिश्र इत्यादि सभी लोग अंग्रेजों के जरिए अरेस्ट कर लिए गए थे, फिर भी जो कुछ लोग बचे थे उन लोगों ने कोतवाली चौक स्थित कांग्रेस के ऑफिस से जुलूस निकालकर अंग्रेज एसडीओ कार्यालय तक जाने का प्रोग्राम बना लिया था, उस वक्त के तिरहुत कमिश्नर पेक ने अपनी पूरी तैयारी के साथ मशीनगन के दहाने खोल दिए, शहीद चौक पर पुलिस को तैनात कर रखा था चुकी, आगे जाने का रास्ता यही था बेतिया के निकट देहात, नौतन, बैरिया आदि से आंदोलनकारी कोतवाली चौक होते हुए छोटा रमना मैदान में जमा होने लगे.
नौतन मलाही बाजार की एक महिला बहन चंद्रकला देवी, बैरिया से बिंदेश्वरी प्रसाद राव, रघुनी बैठा, रोजा यादव, राम नारायण सिंह, दामोदर पुर, चंद्रबली राव नौरंगाबाग, भेड़ीहारी के चंद्रबली राव, एवं बैरिया के बिंदेश्वरी प्रसाद राव, प्रमुख नेता की अगुवाई में यह आंदोलनकारी बेेतिया में पूरे सबडिविजन के लोग आए और शांतिपूर्ण जलूस निकाला गया जिसमे करीब 50,000 लोग शामिल थे, यह देख कर अंग्रेज घबरा गए.... यह लोग छोटा रमना मैदान में जमा हुए थे जिन्हें एसडीओ कार्यालय जाना था, 24 अगस्त 1942 को कमिश्नर पेक ने आजादी के मतवालों पर मशीन गन से फायर खोल दी, जिनमें 8 लोग शहीद हो गए.
शहीद पार्क बेतिया के शहीदों सूची
- रामेश्वर मिश्रा 30 वर्ष छपरा
- गणेश राय 28 साल पुरानी गुदरी
- गणेश राय 42 साल राय धुर्वा
- भागवत उपाध्याय 22 साल बेतिया
- जगन्नाथ पुरी 13 साल लौकरिया
- फौजदार आहिर 42 साल गोड़ा सेमरा
- तुलसी रावत 32 साल राहेसडा
- भिखारी कोईरी 12 साल बरवत सेना
हमारे चंपारण के यह आठ सपूत जालिम अंग्रेज की गोलियों का निशाना बन कर देश की आजादी के लिए इसी जगह पर शहीद कर दिए गए, जिसे हम बेतिया की जलियांवाला बाग कहते हैं.
बरसों बाद करीब 1986 में इन शहीदों की याद में जनता के सहयोग से यह शहीद पार्क मुजसमे(मूर्ति) बनाए गए, जो हमारे शहीदों की याद दिलाते हैं.
सन 1985 तक सिर्फ एक चबूतरा हुआ करता था जहां हर साल लोग फूल की माला शहीदों के नाम पर पेश किया करते थे लेकिन अब यह पार्क एक बड़ा यादगार और चंपारण का ऐतिहासिक धरोहर हम सबके सामने है.
शहीद पार्क बेतिया की तस्वीरों को देखने के यहाँ क्लिक करें
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