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Pir Mohammad Munis: The Fearless Journalist and Freedom Fighter of Champaran Satyagraha

कलम की स्वाधीनता के सिपाही चंपारण सत्याग्रह के महान स्वतंत्रता सेनानी पीर मोहम्मद मूनिस 30 मई 1892 को पैदा हुए, यही दिन हिंदी पत्रकारिता दिवस का भी है.

पीर मोहम्मद मूनिस
(30-may-1892 to 23-sep-1949)

Image from IndiaTimes

अंग्रेजों के शासन काल में यह वही पत्रकार है जिन्हें बदमाश पत्रकार घोषित किया गया था, ब्रिटिश हुकूमत के द्वारा मुनिस ही नही बल्कि उनसे जुड़े लोगों को भी खूब प्रताड़ित किया गया।

मुनिस ने 4 अगस्त 1919 को प्रताप में प्रकाशित अपने लेख में चंपारण में फिर अत्याचार में लिखते हैं, कि मैं राज में इतना बदनाम हूं कि यदि कोई किसी के ऊपर यह दरखास्त दे कि अमुक आदमी मुनिस का दोस्त और मददगार है तो वह बेचारा नौकरी से बर्खास्त कर दिया जाए, अभी हाल ही की बात है, समद नाम का एक आदमी राज में नौकर था अफसरों मेंं से किसी ने यह कह दिया कि वह मुनिस जी का हामी और मददगार है, बस इसी बात पर बेचारा बेकसूर नौकरी से हटा दिया गया, अंग्रेजों ने गांधी को मदद करने वाले 32 लोगों की एक सूची तैयार की जिसमें दसवां नाम मुनिस का था. Mohammed of bettiah is a man of no position, and no means, a dangerous Man, is practically a Badmash(अफरोज आलम साहिल की पुस्तक पृष्ठ 16,17).

पीर मोहम्मद मुनिस हिन्दी भाषा के एक अच्छे लेखक और साहित्य प्रेमी थे. अंग्रेजों का अत्याचार पूरे देश में जारी था कॉन्ग्रेस आजादी की लड़ाई के लिए हर तरफ जद्दोजहद में लगा था, चंपारण में अंग्रेजों के अत्याचार के विरुद्ध हर तरह से मुखालफत जारी थी, लेकिन चंपारण को एक बड़े लीडर की तलाश थी!

पीर मोहम्मद मूनिस के लेख सिर्फ साहित्य ही नहीं सियासत पर भी प्रताप आदि अखबारों में छपते रहे थे. गांधीजी इन्हीं के लेखों के द्वारा चंपारण की कहानी से अवगत हो चुके थे, (गांधी जी के चंपारण आने की दास्तां) गांधीजी चंपारण आए और फिर चंपारण सत्याग्रह के द्वारा आजादी की एक मशाल जलाई. 

पीर मोहम्मद मुनिस ने बहुत ही कम उम्र में हिंदी लेखन शुरू कर दिया था करीब 15-16 साल की उम्र से ही पत्रकारिता में उनके लेख आने शुरू हो गए थे, मुनिस को हिंदी ही नहीं उर्दू और अंग्रेजी में भी महारत हासिल थी, इनके लेख आलेख अपने समय के बड़े-बड़े अखबारों में छपा करते थे इनकी लेखनी से प्रेरित होकर कई बड़े साहित्यकारों ने कोलकाता में रहने बसने की भी बात इनसे की थी लेकिन इन्हें बेतिया अपना घर अपना वतन छोड़कर जाना गवारा नहीं हुआ और यह यहीं के होकर रह गए।

"29 नवंबर 1914 को कानपुर के प्रताप अखबार में प्रकाशित एक लेख में नील की खेती करने वाले चंपारण के किसानों पर यूरोपीय मालिकों पर अत्याचार और अमानवीय प्रताड़ना मुखी आलोचना की गई है और लोगों से इस विषय पर विरोध प्रदर्शन कर मुद्दे को सरकार के सामने लाने का आह्वान किया गया"

आज मैं अपने यहां सभी अखबारों में पीर मोहम्मद मूनिस को तलाश कर रहा था, लेकिन बड़े अफसोस की बात है कि कहीं पीर मोहम्मद मूनिस का जिक्र तक नहीं मिला, इसलिए जो कुछ मुझे याद आ सका आप लोगों को भी याद दिला रहा हूं।

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