पश्चिम चंपारण का केंद्र बेतिया, इतिहास का एक महत्वपूर्ण धरोहर कहा जाए तो गलत नहीं होगा, हकीकत में बेतिया में कई ऐतिहासिक धरोहर मौजूद है, जो सदियों पुरानी है.
इन्ही एक धरोहर में बेतिया का गिरजाघर(Bettiah Church) भी है. यहां पर प्रोटेस्टेंट और कैथोलिक दोनों ईसाई समुदाय के चर्च है, हम कैथोलिक चर्च के बारे में यहां पर चर्चा करेंगे, आज इस कैथोलिक चर्च की उम्र करीब 275 साल हो गई है. इस विषय पर हम विशेष रूप से चर्चा करेंगे.
बेतिया कैथोलिक चर्च के संस्थापक का बेतिया में आगमन !
इससे पहले हम इतिहास की ओर चलते हैं, मुगल साम्राज्य के समय में करीब सन 1602 ईसवी में जहांगीर के द्वारा एक फौजी को बेतिया की जमींदार के रूप में बहाल किया गया ,जो करीब 1605 से 1627 ईसवी तक रहा ( हरेंद्र प्रसाद-बेतिया राज वंश का संछिप्त इतिहास पेज 43-44 ) महाराजा उग्रसेन ने बेतिया राज की बुनियाद रखी. राजा उग्रसेन का शासन काल 1627 से 1659 ईसवी तक रहा इनके बाद राजा गज सिंह, उनके बाद दिलीप सिंह, इनके बाद राजा ध्रुव सिंह का शासनकाल होता है .इन्हीं के शासनकाल में कई महत्वपूर्ण ऐतिहासिक इमारतों का वजूद सामने आता है, राजा ध्रुव सिंह के शासन काल 1715 से 1762 ईस्वी है, इन्हीं के समय में फादर जोसेफ मैरी जिनके द्वारा बेतिया चर्च की स्थापना की गई, 7 दिसंबर 1745 को इनके बेतिया आने का प्रमाण मिलता है.
रोम से बेतिया पहुंचे फादर जोसेफ मैरी !
ईसाई धर्म पुरोहित रोम से तिब्बत तक का सफर को पैदल ही तय किया, क्योंकि तिब्बत में ईसाइयों पर काफी जुल्म किया जा रहा था, वहां मिलने के लिए नेपाल के रास्ते फादर जोसेफ मैरी काफी मुश्किलों का सामना करते हुए पहुंचे. 20 अप्रैल 1745 को तिब्बत मिशन बंद करना पड़ा और 1745 में पाटन , नेपाल पहुंचे--(फादर फुलजेनसयुस पेज 17-24).
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बेतिया राजा और फादर जोसेफ के मधुर सम्बन्ध थे,
तिब्बत जाने के क्रम में बेतिया महाराजा से भी मुलाकाते हुई थी बेतिया राजा की तबीयत खराब होने पर राजा का इलाज भी किया था. 1743 ईस्वी में महारानी की तबीयत खराब थी किसी हकीम या वैद्य से इसका इलाज नहीं हो पा रहा था ,वास्तव में रानी के गले में एक जख्म था बेतिया राज में पटना से आकर फादर जोसेफ मैरी को दवा देने के बाद रानी हफ्ते भर के अंदर पूरी तरह से ठीक हो गई थी, बेतिया के राजा ध्रुप सिंह से फादर जोसेफ मैरी से काफी लगाव रखते थे क्योंकि इनकी दवाओं के कारण राजा और रानी दोनों की ला-ईलाज बीमारियां बहुत जल्द ठीक हो गई थी.
बेतिया में भी ईसाई समुदाय को विरोध का करना पड़ा सामना
1756 में फादर जोसेफ मैरी ने अपने धर्म परिषद को पत्र लिख लिखा था जिसमें बेतिया राजा की काफी तारीफ लिखी थी, बेतिया में भी ईसाइयों को काफी विरोध का सामना करना पड़ा था, (शेरा फिल्म जॉन की किताब पेज 55,67,68).
भूकंप में कैथोलिक चर्च समेत कई इमारतों हो गयीं तबाह
फादर जोसेफ मैरी, फादर कासेन एवं नेपाली ईसाई माइकल, नेपाल से बेतिया 7 दिसंबर 1745 ईस्वी को बेतिया में आए थे ,बेतिया राजा ने राज दरबार के सामने एक मकान इन्हें दिया था ताकि यह उस में रह सकें, तीन कमरे की इस मकान में एक कमरे में आम जनता को मुफ्त दवाई देकर इलाज किया जाता था, दूसरे कमरे में ईसाई इबादत खाना अर्थात छोटा सा गिरजा, तथा तीसरे कमरे में धार्मिक शिक्षा दी जाती थी, इन्हीं छोटे से मकान में बेतिया में ईसाई धर्म का प्रचार प्रसार शुरू हुआ, फादर होम्योपैथी की दवाओं से लोगों का इलाज करते थे .इनकी दवाएं काफी लोगों को बहुत जल्द अच्छी सेहत दे दिया करती थीं, जिससे यह काफी ख्याति प्राप्त करते चले गए. फादर जोसेफ मैरी 15 जनवरी 1761 को यह दुनिया छोड़ जाते हैं, इनके बाद फादर मार्कसन 1866 से इनकी जगह लेते हैं और ईसाई धर्म परवान चढ़ने लगता है स्वयं राजा ने इस गिरजाघर के लिए जमीन दी थी.
आपके सामने जो यह खाली मैदान नजर आ रहा है जहां पर गाड़ियां पार्क की गई हैं, पुराना गिरजाघर इसी खाली जमीन पर स्थित था .सन 1934 के भूकंप में बेतिया की करीब-करीब सभी बड़ी पुरानी इमारतें तबाह हो गई ,जिनमें बेतिया अस्पताल, बेतिया राज इमामबाड़ा, महाराजा लाइब्रेरी, एवं कैथोलिक चर्च भी तबाह हो गया, अभी जो आप यह चर्च का बड़ा सा रूप देख रहे हैं वास्तव में 1934 के बाद 21 नवंबर 1949 को यह भव्य चर्च आपके सामने दोबारा बना जो आपके सामने खड़ा है.
यह कैथोलिक चर्च मूल चर्च सामने बनाया गया !
यहां पर बनाया गया चंद वर्ष पूर्व तक इस चर्च में लोगों को मुफ्त दवाएं दी जाती रही हैं. यह चर्च पूरे चंपारण में होम्योपैथिक के मुफ्त चिकित्सा का केंद्र के रूप में जाना जाता रहा है.
Note: इस लेख में फादर सिरफिन जॉन की पुस्तक "वर्त्तमान में अतीत की खोज " से मदद ली गयी है
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